उन्मेष गुजराथी
संपादकीय

एक साधारण सार्वभौमिक नियम है कि दुनिया का कोई भी बैंक किसी को भी उसकी संपत्ति से अधिक उधार नहीं देता है. लेकिन उद्योगपति गौतम अडानी (Gautam Adani) को मॉर्टगेज से कई गुना ज्यादा उधार दिया गया. ये सभी कर्ज और निवेश सरकारी बैंकों और एसबीआई (SBI), एलआईसी (LIC) जैसी संस्थाओं ने दिए.

हालांकि अडानी का कारोबार बड़ा था, लेकिन यह टाटा (Tata) और बिड़ला (Birla) की तरह पारंपरिक नहीं था. इसे हाल ही में खड़ा गया था. 2014 के चुनाव में भी प्रधानमंत्री पद के दावेदार और मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) अडानी के ही विमान से प्रचार कर रहे थे. उन विमानों पर अडानी ग्रुप (Adani Group) का लोगो और नाम भी था. लेकिन ‘मोदी’ में उनके निवेश से उन्हें काफी फायदा हुआ. इस चुनाव में जीत के बाद अडानी का कारोबार भी आसमान में जा पहुंचा.

चुनावों में उद्योगपतियों की आर्थिक मदद लेना दिल्ली से लेकर गलियों तक भारत में एक परंपरा है. पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू (Pandit Jawaharlal Nehru) और इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) पर भी उस समय बिड़ला (Birla) जैसे उद्योगपतियों से मदद लेने के आरोप लगे थे. लेकिन यह इतना अत्यधिक नहीं था. हालांकि मोदी की चाहत से भारत की अर्थव्यवस्था चरमराने लगी है.

मोदी ने अडानी को शाही आश्रय दिया, इस प्रकार कम समय में उनके साम्राज्य का विस्तार हुआ. लेकिन दुर्भाग्य से शरद पवार (Sharad Pawar), उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray), राज ठाकरे (Raj Thackeray) ने भी उनका साथ दिया. कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने उनका पुरजोर विरोध किया, लेकिन उनकी ताकत काफी कम हो चुकी थी.

मोदी की चेतावनी से सेबी (SEBI) के अधिकारी भी प्रभावित हुए. सेबी (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) (SEBI (Securities and Exchange Board of India) ने अडानी को आईपीओ के साथ आगे बढ़ने की अनुमति दी, हालांकि ये अधिकारी जानते थे कि अडानी एक डूबता हुआ जहाज है. यह सर्वविदित है कि सेबी के अधिकारी इस बात से अच्छी तरह वाकिफ थे कि कंपनी घाटे की ओर बढ़ रही है. ऐसी स्थिति में सेबी को इन आईपीओ (IPOs), एफपीओ (FPOs) पर रोक लगानी चाहिए थी, लेकिन सेबी के भ्रष्ट अधिकारियों ने अडानी के साथ वित्तीय गठजोड़ कर लिया था. इसीलिए सेबी ने अडानी के गलत एवं भ्रष्ट तरीकों का समर्थन किया. लेकिन इससे लाखों निवेशकों का नुकसान हुआ और भारत की अर्थव्यवस्था ही दरक चुकी है.

अडानी की पेटीएम नाम की एक ऐसी ही कंपनी थी. कंपनी घाटे में चल रही थी तो दरअसल सेबी को पेटीएम के आईपीओ को निरस्त कर देना चाहिए था. लेकिन सेबी के अधिकारियों ने पेटीएम के अधिकारी विजय शेखर शर्मा से हाथ मिला लिया था. नतीजतन, लाखों ग्राहकों को धोखा दिया गया. यह देश में एक बड़ा वित्तीय घोटाला है, इसलिए स्प्राउट्स की एसआईटी ने मामले की गहन जांच की मांग की.

इतना ही नहीं बल्कि सेबी अधिकारियों के भ्रष्टाचार को उजागर करते हुए 19 और 20 नवंबर 2021 को दो विशेष रिपोर्ट भी प्रकाशित की गई थीं. रिपोर्ट्स ‘Untrustworthy SEBI gives Paytm free hand’ और ‘Multy crore scam in Paytm’ स्प्राउट्स की वेबसाइट पर उपलब्ध हैं. लेकिन दुर्भाग्य से यह कांड भी दबा दिया गया. सेबी के वही अधिकारी आज भी फर्जी अडानी के समर्थन में घूम रहे हैं.