वर्तमान मानसून सीजन में जितनी जल्दी हो सके रायवाल उगाएं
उन्मेष गुजराथी
स्प्राउट्स एक्सक्लूसिव
पिछले दो वर्षों में दो चक्रवातों में अधिकांश पौधों के नष्ट होने के समय, रायवल आम (Raywal mango) के पौधे प्रकृति की कठोरता के सामने डेट रहे, इसलिए वर्तमान वर्षा ऋतु के समापन के पहले रायवल आम के पौधों को बड़े पैमाने पर लगाने के लिए एक त्वरित अभियान चलाये जाने का समय है.
नकदी फसल (cash crop) कहे जाने वाले अनेक पौधे भारी बारिश में नष्ट हो गए. लेकिन रायवल, आम की एक स्थानीय किस्म, बरकरार रही. अंतत: रायवल आम सुरक्षित रहेगा और किसानों के हितों की रक्षा करेगा.
हालांकि अल्फांसो (हापूस) (Alphonso (Hapus) पिछले कई दशकों से भारतीय आम बाजार पर हावी रहा है, वनस्पति विज्ञान विशेषज्ञों (botany experts) ने साबित कर दिया है कि आम की रायवल किस्म स्वाद और पौष्टिकता में सबसे अच्छी है और यही समय है कि लोग रायवल आम पर भरोसा करना शुरू कर दें, जिसकी कीमत अल्फांसो की बिक्री की आसमान छूती दरों की तुलना में काफी कम होती है.
हालांकि अल्फांसो को भारतीय आमों का राजा माना जाता है और भौगोलिक इंडिकेशन का टैग (Geographical Indication tag) हासिल हो चुका है, अब समय आ गया है कि अल्फांसो का ताज हटाया जाए क्योंकि रायवल सहित बेहतर किस्में कोकण एरिया में बहुत सस्ती दर पर उपलब्ध हैं.
रायवल 200 किलोमीटर लंबी कोकण की तटीय पट्टी (Kokan coastline) में देवगढ़ (Devgad) और रत्नागिरी (Ratnagiri) जिलों में उगाया जाता है. कोकण का अर्थ आम और आम का अर्थ अल्फांसो, युगों से एक समीकरण रहा है. हालांकि यह समीकरण जैव-विविधता (bio-diversity) और अंततः पर्यावरण को नष्ट करने वाला साबित हुआ है. “स्टेटस सिंबल” (status symbol) – अल्फांसो की खेती के लिए स्थानीय वनस्पति (vegetation) की हजारों किस्मों को काटा जा रहा है. कोयला ठेकेदारों की मदद से उनकी गहरी जड़ें उखाड़ी जाती हैं.
इससे सतह के ऊपर और नीचे कई जैविक प्रजातियां नष्ट हो जाती हैं. साथ ही इस मोनोकल्चर खेती (mono-culture cultivation) के कारण फसल में लगने वाले रोगों (crop diseases) में भी वृद्धि हुई है. स्थानीय किस्मों का उत्पादन घटा है. एक फसल की खेती पर अत्यधिक जोर देने के कारण, कोकण की लगाम, जो कभी स्थानीय किसानों के हाथों में थी, व्यापारियों के हाथों में चली गई है.
विदर्भ (Vidarbha) और मराठवाडा (Marathwada) के नकदी-फसल किसानों की तरह, अब बागवानी (horticulture) में लगे कोकण के किसान भी विलुप्त होने के कगार पर हैं. अगर इस तबाही (catastrophe) को टालना है तो रायवल आम जैसी प्रजाति पर ध्यान देना चाहिए, जिसकी खेती सीमित लागत में की जा सकती है. कॉस्मिक इकोलॉजिकल ट्रस्ट (सीईटी) (Cosmic Ecological Trust (CET) और मैत्री फाउंडेशन (एमएफ) (Maitri Foundation (MF) ने सरकार से कोकण की अर्थव्यवस्था की सुरक्षा के लिए स्थानीय प्रजातियों के संरक्षण और उचित ब्रांडिंग करने का आग्रह किया है.
रायवल की प्रजाति किसी भी तरह से अल्फांसो से कमतर नहीं है. इसके अलावा, रायवल की बहुत सी किस्में हैं. रायवल (महाराष्ट्र), तोतापुरी (दक्षिण भारत) और दशहरी (उत्तर प्रदेश) जैसी प्रजातियां सजातीय (homogeneous) नहीं हैं. हालांकि यह माना जाता है कि सभी आम एक जैसे होते हैं, लेकिन पर्यावरण की स्थिति के अनुसार उनके गुण बदलते रहते हैं.
रायवल का आकार और स्वाद हर पेड़ में अलग होता है. रायवल जैसे प्रकृति के अनुकूल और सिद्ध फलों के अत्यधिक सेवन से भी स्वास्थ्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता. इसके विपरीत अल्फांसो आम को खाने से पहले टुकड़ों में काटना आवश्यक होता है. अल्फांसो आम को चूसने से शरीर में अधिक गर्मी उत्पन्न हो सकती है. ऐसे में अगर आम का स्वाद लेना है तो रायवल सबसे अच्छा विकल्प है. इसका रस सेवन के लिए हल्का होता है. ऐसे में रायवल आम के इन्हीं गुणों का प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए.
सीईटी पिछले कई वर्षों से रायवल आम की खेती और संरक्षण के लिए जन जागरूकता अभियान चला रहा है. मैत्री फाउंडेशन ने भी इस कार्य में अग्रणी भूमिका निभाई है. रायवल के बीजों से पौधों के उत्पादन के लिए विशेष प्रयास, गाय उत्पादों पर आधारित जैविक खेती के लिए मार्गदर्शन और रायवल के गुणों का प्रचार-प्रसार इस अभियान का हिस्सा हैं.
रायवल की खेती किफायती है. इसके अलावा, फलों के प्रसंस्करण (fruit processing) से बहुत सारे रोजगार सृजित हो सकते हैं. इसके अलावा, वर्तमान आर्थिक परिस्थितियों में, आम आदमी अल्फांसो का खर्च नहीं उठा सकता है. रायवल की खेती में उसे निश्चित रूप से लागत की तुलना में बेहतर रिटर्न मिलेगा. इसके अलावा सस्ते और सेहतमंद रायवल की ज्यादा मांग हो सकती है. इसे देखते हुए सीईटी ने रायवल आम के संरक्षण के लिए कोकणवासियों और आम प्रेमियों से आगे आने का आग्रह किया है.
चूंकि अल्फांसो आम बाजार में अधिक कीमत में मिलता है, इसलिए हर कोई इस फल के अधिक से अधिक पौधे लगाने में लगा हुआ है. सौदा सरल है: केवल इतना करना है कि उपज निकालने के लिए पेड़ों को व्यापारियों को सौंपना है. लेकिन व्यापारियों का कोकण की मिट्टी या कोंकण के लोगों के प्रति कोई लगाव नहीं है. उनका लक्ष्य अपने निवेश पर अधिकतम लाभ कमाना होता है.
फिर फल के आकार को बढ़ाने और कृत्रिम रूप से आकर्षक रंग देने के लिए पौधों पर रसायनों का छिड़काव करने का प्रयास शुरू होता है. कम समय में अधिक से अधिक उपज प्राप्त करने के लिए ऐसे प्रयास किए जाते हैं. हालांकि इस प्रक्रिया में पेड़ सूख जाते हैं और मिट्टी भी अपनी उर्वरता खो देती है. कमजोर पौधे भी रोगों के प्रति अतिसंवेदनशील (susceptible) होते हैं और अंततः कीटनाशकों (pesticides) की आवश्यकता होती है. हालांकि कीटनाशकों के अत्यधिक छिड़काव से पौधे अपने मूल अवयवों (ingredients) और अंततः अपनी प्राकृतिक प्रतिरक्षाशक्ति (natural immunity) को खो देते हैं.
बागों को स्थायी नुकसान होने के कारण आय में भी कमी आ जाती है. अगर हमें इस तरह के दुष्चक्र से खुद को मुक्त करना है तो हमें रायवल आम जैसी भरोसेमंद (dependable) प्रजातियों की खेती और जैविक खेती (organic farming) पर ध्यान देना होगा, जो कम लागत पर की जा सकती है.
आम की विभिन्न प्रजातियों के गुणों और मानव स्वास्थ्य पर उनके प्रभाव का अध्ययन होना चाहिए. अल्फांसो की मार्केटिंग की तरह आम की अन्य प्रजातियों की भी मार्केटिंग की जा सकती है. इससे आम के पारखी (connoisseurs) अलग-अलग विकल्पों से रूबरू होंगे. अगर और विकल्प मिले तो आम का बाजार फलेगा-फूलेगा. इसके अलावा, मोनो-कल्चर के कारण होने वाले पर्यावरणीय नुकसान से भी बचा जा सकता है.
अल्फांसो की खेती मुख्यतः रसायनों पर आधारित है. कलमी पौधों से अधिक उपज निकालने के लिए रसायनों का अधिक मात्रा में छिड़काव किया जाता है. इस प्रक्रिया में, न केवल फल नष्ट हो जाते हैं, बल्कि स्थानीय कीटों की प्रजातियां और उन पर निर्भर पक्षी भी नष्ट हो जाते हैं. इससे पक्षियों की कई प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं. आम के बागों के अलावा रसायनों के इस तरह के अत्यधिक छिड़काव से अन्य फसलों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.
“अल्फांसो (हापूस) आम एक उष्णकटिबंधीय फल (tropical fruit) है और गर्मी के लिए बहुत स्वस्थ नहीं है जब तापमान अधिक होता है. इसके विपरीत रायवल सभी मौसम की फसल है जो किसी भी तापमान में जीवित रह सकती है. इसके अलावा रायवल जैसे फलों के अधिक सेवन से भी स्वास्थ्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है.
– डॉ. उदयकुमार पाध्ये,
अध्यक्ष, कॉस्मिक इकोलॉजिकल ट्रस्ट