उन्मेष गुजराथी
स्प्रॉउट्स एक्सक्लूसिव
बढ़ता शहरीकरण और व्यस्त शहरी जीवन शैली खाने के लिए तैयार और पैकेज्ड खाद्य उत्पादों की खपत को बढ़ावा देते हैं. चिकित्सा विज्ञान विशेषज्ञों (medical science experts) का दावा है कि ऐसे खाद्य पदार्थों में पाम ऑयल (palm oil) की उच्च प्रतिशतता के कारण स्वास्थ्य संबंधी खतरों में महत्वपूर्ण वृद्धि होगी. हाल के दशक में किए गए अध्ययन बताते हैं कि किसी भी खाद्य उत्पाद में पाम ऑयल की उच्च मात्रा दिल की गंभीर बीमारियों का कारण बन सकती है. दुर्भाग्य से, ये निष्कर्ष केवल तभी छप पाते हैं जब यह मशहूर हस्तियों के जीवन को प्रभावित करता है, जिससे असामयिक मृत्यु हो जाती है. इसका ताजा उदाहरण 40 वर्षीय सिने अभिनेता सिद्धार्थ शुक्ला (Siddharth Shukla) की मौत का है.
ताड़ के तेल के बुरे प्रभावों के निष्कर्षों ने मधुमेह और हृदय संबंधी समस्याओं (diabetes and heart-related problems) जैसी घातक जीवन शैली की बीमारियों की बढ़ती घटनाओं पर भी प्रकाश डाला, जिसके कारण युवा लोगों ने असामयिक मृत्यु को बुलाने के लिए पाम ऑयल से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन किया. विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum (WEF) द्वारा पुष्टि किए गए निष्कर्षों में कहा गया है कि युवा लोगों की होने वाली मौतों में से लगभग आधी पाम ऑयल से भरपूर भोजन की खपत को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. पाम ऑयल ताड़ के पेड़ के मांसल फलों के गूदे का अर्क होता है और कमरे के तापमान पर एक लाल-नारंगी रंग के साथ अर्ध-ठोस अवस्था में मौजूद होता है.
ऐसे भारतीय खाद्य उत्पादों में अत्यधिक पाम ऑयल की मात्रा का हवाला देने का कारण विनिर्माण स्तर पर लागत से संबंधित है. श्रेणी में बिस्कुट, कुकीज़ और चिप्स या वेफर्स (biscuits, cookies and chips or wafers) शामिल हैं क्योंकि वे ब्रांडेड हो जाते हैं. दूसरे शब्दों में, पाम ऑयल अन्य खाद्य तेल वेरायटीज की तुलना में अपेक्षाकृत सस्ता होने से निर्माताओं को उत्पादन लागत कम करने में मदद मिलती है. हाल के अध्ययनों से पता चलता है कि भारत पाम ऑयल के सबसे बड़े आयातकों में से एक है और पाम ऑयल की कीमतों में वैश्विक वृद्धि के बावजूद, निर्माताओं को यह लागत के दृष्टिकोण से सबसे बेहतर लगता है.
पोषण के मोर्चे पर विशेषज्ञ लगातार यह कहते रहे हैं कि पाम ऑयल या पामोलीन तेल या पामिटिक एसिड (palm oil or palmolein oil or palmitic acid) का उपयोग करने वाले उत्पादों को उपभोग के लिए सख्त वर्जित होना चाहिए. सरल शब्दों में, पोषण विशेषज्ञ का कहना है कि इसमें संतृप्त वसा (saturated fats) का अत्यधिक उच्च प्रतिशत है. पोषण विशेषज्ञों के अनुसार, उच्च स्तर की संतृप्त वसा की उपस्थिति कैसे नुकसान पहुंचाती है, इसके मूल सिद्धांतों में खराब रक्त कोलेस्ट्रॉल, मोटापा और हृदय संबंधी बीमारियों (bad blood cholesterol, obesity, and cardiovascular ailments) में वृद्धि शामिल है. उन्होंने चेतावनी भी दी कि पाम ऑयल के विपरीत, खाद्य तेलों की अन्य वेरायटीज जैसे जैतून का तेल, नारियल तेल या रिफाइंड तेल (olive oil, coconut oil or refined oil) में बहुत कम हानिकारक सामग्री होती है. विशेषज्ञों ने यह भी बताया कि यह केवल पैकेज्ड फूड में तेल की उच्च सामग्री के बारे में नहीं है, बल्कि शहर की सड़कों पर तला हुआ भोजन बेचने वाले फेरीवालों के मामले में भी है, जो कम कीमत पर खाना पकाने के लिए अक्सर पाम ऑयल को बार-बार गर्म करते रहते हैं. दोबारा गर्म किया गया पाम ऑयल खतरनाक बताया गया है क्योंकि यह एथेरोस्क्लेरोसिस (atherosclerosis) जैसी गंभीर दिल की बीमारी का कारण बन सकता है.
जब मानव उपभोग की बात आती है तो पाम ऑयल का प्रकार, पामिटिक एसिड भी स्वास्थ्य के लिए एक अप्रत्यक्ष खतरा बन जाता है. पौष्टिक भोजन पर शोधकर्ताओं ने खुलासा किया है कि यह इंसुलिन (insulin) जैसे प्राकृतिक हार्मोन के दमन के कारण उपभोक्ताओं में अधिक खाने का कारण बन सकता है. पौष्टिक भोजन और उपभोग के पैटर्न की विशेषज्ञ संध्या गुगनानी (Sandhya Gugnani) ने आगाह किया कि पाम ऑयल की मात्रा से भरपूर खाद्य उत्पादों के नियमित सेवन से इसकी उच्च संतृप्त वसा सामग्री के कारण खराब कोलेस्ट्रॉल के स्तर में तेजी से वृद्धि होगी. उन्होंने कहा कि इससे कम उम्र में भी दिल की बीमारी हो सकती है. जबकि ऐसे विशेषज्ञ हैं जो मानते हैं कि पाम ऑयल कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करता है, खराब कोलेस्ट्रॉल के स्तर में वृद्धि के प्रतिवाद को चिकित्सा क्षेत्र से अधिक वजन मिला है. प्रतिवाद करने वाले पोषण विशेषज्ञ, यह भी कहते हैं कि पाम ऑयल खाने के लिए नियमित मक्खन की तुलना में बेहतर होता है जिसका हम रोटी के साथ उपयोग करते हैं. हालांकि, खराब कोलेस्ट्रॉल कारक के कारण इसके सेवन से बचना सबसे अच्छा है.
अवयवों के संदर्भ में आंकड़े प्रदान करते हुए, पोषण विशेषज्ञों ने कहा कि पाम ऑयल में 34% संतृप्त वसा होती है और जैतून का तेल इस संबंध में अधिक स्वास्थ्यवर्धक होता है क्योंकि इसमें ऐसे वसा की मात्रा आधे से भी कम होती है. पोषण विशेषज्ञों द्वारा प्रकाश में लाए गए गंभीर स्वास्थ्य मुद्दों के मद्देनजर, ताड़ के पेड़ों के बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण अभियान को चुनने के हालिया सरकार के कदम को न केवल एक पारिस्थितिक बल्कि गंभीर स्वास्थ्य समस्या भी माना जा रहा है.